Women Empowerment - The ABVP Way

 

1

भारत सनातन काल से ही समृद्धशाली था, राष्ट्र का गौरवपूर्ण अतीत इसी बात का साक्षी है। हमारी संस्कृति और परंपराओं के मूल में वही चेतना रही है जो - माता भूमि पुत्रोऽहं पृथिव्या की भावना से ओत-प्रोत है। इसीलिए हमने अपने राष्ट्र को भारत माता के रूप में जाना और पूजा। धरती माता, गौमाता और हमारी सभी देवियां मातृशक्ति ही हैं। यानी राष्ट्र की सांस्कृतिक चेतना के मूल में मातृशक्ति-नारीशक्ति है। जो सकारात्मकता और रचनात्मकता के साथ जीवन का बोध देती है। भारत की प्राचीन संस्कृति में महिलाओं को सम्मानित स्थान प्राप्त था। वे न केवल घर के कार्यों में, बल्कि सामाजिक और धार्मिक आयोजनों में भी सक्रिय रूप से भाग लेती थीं। वेदों की ऋचाओं की रचना से लेकर भक्त संतों, आधुनिक स्वतंत्रता आंदोलन में वीरांगना माताओं की भूमिका अग्रणी रही है। स्वाधीनता के बाद संविधान निर्माण से लेकर समाज सुधार और सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और प्रशासनिक समस्त क्षेत्रों में महिलाओं की सक्रिय भागीदारी सुनिश्चित हुई है। जो कि हमारी उसी भारतीय परंपरा का प्रतिनिधित्व करती है। साथ ही भारतीय समाज में महिलाओं के अधिकारों के प्रति जागरूकता बढ़ी और कई महान संतों एवं समाज सुधारकों ने महिला शिक्षा और उनके अधिकारों के लिए आवाज़ उठाई।

1

9 जुलाई 1949 को अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद की स्थापना के साथ ही परिषद ने विद्यार्थियों के हित में काम करना शुरू किया। इसमें छात्र और छात्रा दोनों को समान भूमिका में रखने की पद्धति बनी। जो निरंतर अपने विशिष्ट रूप में देखने को मिलती है। 1960 के समय से श्रद्धेय प्रा. यशवंतराव केलकर की प्रेरणा और कार्यकर्ताओं के प्रयासों के साथ छात्राओं ने बढ़-चढ़कर संगठन में कार्य करना शुरू कर दिया। 1961-62 में घोषित ABVP की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में सुलभा देवधर सबसे पहले शामिल हुईं। साथ ही 1965-70 के बीच कई स्थानों पर छात्राओं ने इकाई-मंत्री जैसे पदों का दायित्व संभाला। तत्पश्चात मध्य प्रदेश, कर्नाटक, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल में छात्रा कार्य प्रारंभ हुआ‌। इस प्रकार 1980 के दशक तक उड़ीसा, दिल्ली, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश जैसे राज्यों में छात्राओं की सक्रिय भागीदारी ने संगठन को मजबूती दी। इस प्रकार संगठन की संरचना में छात्राओं की भूमिका बढ़ती चली गई। सबसे पहले 1967 में छात्रा कार्यकर्ता को पूर्णकालिक निकालने की शुरुआत हुई। उस समय अंजली परचुरे देशपांडे ने पहली पूर्णकालिक कार्यकर्ता के तौर पर संगठन के विभिन्न दायित्वों को निभाया। वहीं 1984 में गीता गुंडे ने निजी कंपनी की नौकरी छोड़कर ABVP में पूर्णकालिक कार्य किया। वे राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और अखिल भारतीय छात्रा प्रमुख बनीं और आजीवन राष्ट्रसेवा में सक्रिय रहीं। परिषद के केन्द्रीय अधिकारी अपने वर्गों में बताते हैं कि गीता दीदी के बाद से परिषद में छात्राओं की भूमिका बढ़ती चली गई। यानी गीता दीदी ने जो मार्ग दिखाया वो हम-सबके के लिए प्रेरणा बना। 

1

1970 के दशक के समय से ABVP की छात्रा कार्यकर्ताओं ने छात्रसंघ के चुनाव लड़े-जीते और अपनी प्रभावी भूमिका निभाई। 1980 के दशक के दौरान से परिषद में विवाहित प्राध्यापिकाओं और पूर्व छात्रा कार्यकर्ताओं ने किसी न किसी रूप में अपनी भूमिका निभानी शुरू कर दी। आगे चल 1988 में मुंबई में पहला अखिल भारतीय छात्रा अभ्यास वर्ग हुआ। साथ ही 1989-90 के बाद छात्रा सम्मेलन, आंदोलनों और शिविरों के जरिए छात्राओं की विशेष भागीदारी सुनिश्चित की गई। अगर वर्तमान की बात करें तो देशभर में 50 से अधिक पूर्णकालिक छात्रा कार्यकर्ता हैं। मैंने खुद पूर्णकालिक छात्रा कार्यकर्ता के तौर पर विभाग संगठन मंत्री के तौर पर काम किया है। इतना ही नहीं स्कूल, कॉलेज और यूनिवर्सिटी से लेकर विद्यार्थी परिषद समाज जीवन में भी सक्रिय हैं। जनजागरण से लेकर सकारात्मक परिवर्तन के लिए अभाविप के कार्यकर्ता पूरी निष्ठा के साथ काम करते हैं। भारतीयता के मूल्यों के साथ अभाविप सभी प्रकार के भेदभावों को नकारता है। समरसता की भावना के साथ काम करता है।

1

अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद का यह स्पष्ट मत है कि “स्त्री का सर्वांगीण विकास केवल कानून के माध्यम से नहीं, बल्कि उचित, जागरूक और मूल्यों पर आधारित शिक्षा के माध्यम से ही संभव है। शिक्षा नारी को आत्मनिर्भर बनाती है—वह न केवल उसे आत्मसम्मान का अनुभव कराती है, बल्कि आर्थिक रूप से स्वतंत्र होने का मार्ग भी दिखाती है। इससे वह निर्णय लेने में सक्षम होती है, और सामाजिक, आर्थिक तथा राजनीतिक क्षेत्रों में सक्रिय भागीदारी निभा पाती है।” (ध्येय यात्रा खण्ड 02, पृष्ठ क्र. 317 )

इतना ही नहीं अभाविप मानता है कि “छात्राओं की भागीदारी केवल महिला समस्याओं तक सीमित नहीं होनी चाहिए, बल्कि समग्र समाज-निर्माण की प्रक्रिया में भी होनी चाहिए। परिषद द्वारा आयोजित महिला केंद्रित कार्यक्रमों का उद्देश्य केवल समस्याओं पर चर्चा नहीं, बल्कि समाधान और सशक्त सहभाग की ओर कदम बढ़ाना है। स्त्री-पुरुष दोनों समाज के अभिन्न अंग हैं। किसी भी सशक्त राष्ट्र और न्यायपूर्ण समाज के निर्माण में दोनों की समान भूमिका होनी चाहिए। परिषद का यह स्पष्ट दृष्टिकोण है कि स्त्री और पुरुष के बीच संबंधों में स्वाभाविक सम्मान, परस्पर पूरकता और सहयोग का भाव होना चाहिए, जो समाज-परिवर्तन की नींव बनेगा।" (ध्येय यात्रा खण्ड 01-भूमिका)

इन्हीं भावों और विचारों की दृष्टि से परिषद की छात्रा कार्यकर्ताओं को केवल संगठनात्मक दायित्व नहीं दिए जाते हैं। बल्कि उनकी बहुमुखी प्रतिभा के माध्यम से समाज जीवन के विविध क्षेत्रों में सक्रिय भागीदारी सुनिश्चित की जाती है। 

अभाविप में निरंतर बढ़ता छात्रा कार्य

बतौर छात्रा कार्यकर्ता – नगर की प्रारंभिक ईकाई से लेकर प्रांत और क्षेत्रीय छात्रा प्रमुख का दायित्व और राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य, केंद्रीय कार्यसमिति सदस्य के तौर पर मेरी यात्रा भी परिषद की श्रेष्ठ पद्धति का परिणाम है। इसके पीछे का आशय ये है कि संगठन सभी को समान अवसर देता है और कार्यकर्ताओं की बड़ी श्रृंखला बनाता है। जो विद्यार्थियों के बीच ही नहीं बल्कि सभी क्षेत्रों में सृजनात्मक कार्य करते हैं। अभाविप ने छात्राओं के हित के लिए कई बड़े आंदोलन किए। विभिन्न राज्यों की शैक्षणिक व्यवस्थाओं में सकारात्मक परिवर्तन कराए। छात्राओं के लिए स्कॉलरशिप से लेकर उनकी उच्च शिक्षा में भूमिका सुनिश्चित की। इस संबंध में ध्येय यात्रा पुस्तक हमारी यात्रा को लेकर मार्गदर्शन करती है। 

1

महिला उच्च शिक्षा: समस्याएँ और समाधान के अंतर्गत 1999 में वडोदरा में ‘महिला उच्च शिक्षा’ विषय पर राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। इसमें महिला शिक्षा के विविध पहलुओं जैसे—नामांकन में कमी, ड्रॉप आउट, लैंगिक असमानता, व्यावसायिक शिक्षा में अवसर, आदि पर चर्चा की गई। कई सुझाव सरकार को भेजे गए, जिनमें महिला कॉलेजों की संख्या बढ़ाने, छात्रवृत्तियाँ देने और विशेष सुविधाएँ प्रदान करने की बातें शामिल थीं।

विशेष सम्मेलन: छात्रा संसद एवं विमर्श के अंर्तगत 2008 में हैदराबाद में “वैश्वीकरण एवं महिलाएँ: प्रभाव, चुनौतियाँ व अवसर” विषय पर राष्ट्रीय विमर्श आयोजित किया गया।

2016 एवं 2025 में दिल्ली में ‘छात्रा संसद’ का आयोजन हुआ, जिसमें देशभर की लगभग 300 छात्राओं ने भाग लिया।

परिषद ने छात्रा-शिक्षा और समस्याओं को केवल चर्चा तक सीमित नहीं रखा, बल्कि जमीनी समाधान के प्रयास किए। परिषद ने जिला स्तर पर तकनीकी, प्रबंधन व अन्य पाठ्यक्रमों में महिला छात्रावासों की माँग की, जिसे कई बार दोहराया गया और इसमें सफलता भी मिली। 2011 में जबलपुर के रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय में बी.एस.सी. मेडिकल की छात्राओं से अनुचित आर्थिक माँग को लेकर अभाविप ने संघर्ष किया था।

(ध्येय यात्रा खण्ड 01, पृष्ठ क्र. 236-237)

परिषद ने छात्रा कार्य के साथ-साथ महिलाओं के सम्मान के लिए भी लड़ाई लड़ी। रचनात्मक प्रयास किए। अभी भी परिषद के राष्ट्रीय अधिवेशन और प्रांतीय अधिवेशन के दौरान ऐसे कई प्रस्ताव पारित किए जाते हैं जो महिलाओं की सक्रिय भागीदारी सुनिश्चित करते हैं। परिषद के 72वें राष्ट्रीय अधिवेशन, जो 24 से 27 दिसंबर 2016 को इंदौर (मध्यप्रदेश) में सम्पन्न हुआ। इस अधिवेशन में “महिला-सम्मान” विषय पर एक विशेष प्रस्ताव पारित किया गया था। इस प्रस्ताव का उद्देश्य था – महिलाओं के प्रति समाज में बढ़ रही असंवेदनशीलता, असमानता, असुरक्षा और शोषण के विरुद्ध एक संगठित व सकारात्मक जनचेतना का निर्माण हो । जिसमें – छात्राओं को शिक्षा के समान अवसर और मूलभूत सुविधाएँ मिलें, उच्च शिक्षा हेतु प्रोत्साहन दिया जाए। जाति, धर्म, वर्ग के भेदभाव के बिना महिलाओं को समान अधिकार एवं सामाजिक व्यवहार में पूर्ण सम्मान। दहेज प्रथा, बाल विवाह, कन्या भ्रूण हत्या जैसी बुराइयों के खिलाफ जनजागरूकता। शैक्षणिक संस्थानों, कार्यस्थलों व सार्वजनिक स्थानों पर सुरक्षा के ठोस उपाय हो। 'निर्भया फंड’ का प्रभावी उपयोग जिसमें प्रशिक्षण केंद्रों की स्थापना। महिलाओं पर होने वाले अपराधों के विरोध में संगठित छात्र सहभाग। महिलाओं को आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनाने हेतु सुरक्षित कार्य वातावरण और समान अवसर मिले जैसे विषय रहे। (ध्येय यात्रा खण्ड 02, पृष्ठ क्र. 220)

छात्राओं की सामाजिक विषयों में कैसी भूमिका रही। इस संदर्भ में अगर हम कुछ विशेष तथ्यों की बात करें तो ABVP द्वारा 12 दिसंबर 2012 को महाराष्ट्र में “कन्या भ्रूण हत्या रोकने” के लिए ऐतिहासिक संकल्प लिया गया, जिसमें 80,000 से अधिक छात्राओं ने भाग लिया। 2013 में पटना छात्रा सम्मेलन में “निर्भया” कांड पर श्रद्धांजलि मार्च और देशभर में 700 स्थानों पर विरोध-प्रदर्शन हुए। 2014 में पंजाब व हरियाणा सहित कई प्रांतों में जिला छात्रा सम्मेलन आयोजित हुए। 2 अक्टूबर 2015 को दिल्ली में “अखिल भारतीय छात्रा संसद” में 300 छात्राओं ने महिला सुरक्षा, शिक्षा, स्वास्थ्य आदि विषयों पर चर्चा की। 2016 में “उच्च शिक्षा में छात्राओं की स्थिति” पर 50,000 से अधिक छात्राओं का सर्वे कराया गया, जिसका विश्लेषण 2018 में प्रस्तुत किया गया। (ध्येय यात्रा खण्ड 02, पृष्ठ क्र. 321)

इसी प्रकार अभाविप संगठन की समूची सदस्यता में छात्राओं की सदस्यता लगभग 40 प्रतिशत हो चुकी है। आत्मरक्षा की दृष्टि से देशभर की विभिन्न शैक्षणिक इकाइयों में परिषद ‘मिशन साहसी’ अभियान चलाता है। जोकि एक महत्वपूर्ण काम है। समाज में इसकी ख़ूब प्रशंसा होती है। परिषद ने इसी कड़ी में महिलाओं के स्वास्थ्य और स्वच्छता के प्रति जागरूकता बढ़ाने के उद्देश्य से “ऋतुमती अभियान” शुरू किया। इस अभियान के अंतर्गत देश के ग्रामीण और पिछड़े क्षेत्रों में जाकर महिलाओं को मासिक धर्म के दौरान साफ-सुथरे सैनिटरी नैपकिन के उपयोग के लिए प्रेरित किया गया।‌ ताकि वे पुराने और अस्वच्छ कपड़ों का प्रयोग छोड़ सकें। मैंने खुद ऋतुमती अभियान को लेकर गांवों से लेकर सेवा बस्तियों और नगर के विभिन्न क्षेत्रों में काम किया। छात्राओं की टोली बनाई और महिलाओं के बीच बातचीत कर उनके स्वास्थ्य को लेकर अभाविप की पहल के बारे में बताया।‌ संगठन की योजनानुसार क्षेत्र और प्रांत में ऋतुमती अभियान को लेकर काम किया।

मैं जब अपने कार्य अनुभवों के साथ-साथ वरिष्ठों को सुनती हूं। उनके विचारों और कार्यों को देखती हूं। संगठन की ध्येय यात्रा को समझती हूं तो ये स्पष्ट समझ आता है कि अभाविप की छात्रा कार्यकर्ता होना एक महत्वपूर्ण दायित्व है। यह दायित्व राष्ट्र और समाज की सेवा के लिए एक जागरूक नई पीढ़ी का निर्माण करना है। जो समाज जीवन के समस्त क्षेत्रों में कार्य करे। राष्ट्र पुनर्निर्माण, ज्ञान-शील-एकता के मंत्र को चरितार्थ करे। अभाविप की तपोस्थली से तपकर समाज के विविध आयामों में छात्रा कार्यकर्ताएं, पूर्व कार्यकर्ताएं काम कर रही हैं। अपनी प्रभावी भूमिका निभा रही हैं। चाहे वो शिक्षा का क्षेत्र हो, राजनीति, प्रशासन, स्वास्थ्य, तकनीकी हो। समस्त क्षेत्रों में अभाविप की ज्वाला जल रही है जो समाज को प्रकाशित करने के लिए संकल्पित है। ये यात्रा सामूहिक प्रयासों, संकल्पों और उन्हें परिणाम में परिवर्तित करने की दृढ़ इच्छा शक्ति का ही प्रतिफल है। हम सब बस अपने-अपने दायित्वों को पूरी निष्ठा के साथ निभाते जाएं। एक दिन ऐसा अवश्य आएगा जब विश्व गगन की सभी दिशाओं में भारत माता की जयकार सुनाई देगी।

--

वसुंधरा सिंह (क्षेत्रीय छात्रा प्रमुख, मध्यक्षेत्र एवं केंद्रीय कार्यसमिति सदस्य )